Monday, May 13, 2019

सुंदरकांड और लंका कांड में सहस्त्रबाहु भगवान की कीर्ति का वर्णन

तुलसीदास जी द्वारा लिखित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड और लंका कांड में सहस्त्रबाहु भगवान की महिमा बताई गई है।

जानउँ मै तुम्हारी प्रभुताई ।
सहसबाहु सन परी लराई।।
 समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनी कपि बचन बिहसि बिहरावा।।

यह चौपाई श्री तुलसीदास जी द्वारा लिखित श्रीरामचरितमानस के पंचम सोपान सुंदरकांड में है।

इसमें हनुमान जी रावण के लिए व्यंग्यात्मक रूप से तंज कस रहे हैं कि मैं तुम्हारी महिमा जानता हूं तुमने सहस्त्रबाहु संग लड़ाई की थी (तब सहस्त्रार्जुन भगवान ने रावण को बंदी बना लिया था), बाली के संग भी तुम ने लड़ाई करी थी (तब बाली ने अपनी कांख में दबा कर पूरी पृथ्वी है कई चक्कर लगाए थे) यह बातें सुनकर रावण हंसी में उड़ा देता है।

एक बहोरी सहसभुज देखा।
धाई धरा जीमि जंतु बिसेषा।।
कौतिक लागि भवन लै आवा।
सो पुलस्ति मुनि जाई छोड़ावा।।

यह चौपाई श्री तुलसीदास जी द्वारा लिखित श्रीरामचरितमानस के षष्ठ सोपान लंकाकांड में है।

महाबली अंगद रावण के राज दरबार में रावण से कहते हैं तू कौन सा रावण है ? एक रावण वो था जिसे सहस्त्रबाहु ने देखा तो उन्होंने दौड़ कर उसको एक विशेष प्रकार का (विचित्र) जंतु की तरह समझ कर पकड़ लिया। तमाशे के लिए बंदी बनाकर वे उसे घर ले आये। तब पुलस्त मुनि ने जाकर रावण को छुड़ाया।

संकलन
हैहयवंशीय कृष्णकांत वर्मा

Tuesday, May 7, 2019

परशुराम जयंती (आखा तीज) पर कुछ ब्राह्मणों द्वारा किए जा रहे हो प्रचार का विरोध करें

परशुराम जयंती (आखा तीज) पर कुछ ब्राह्मणों द्वारा किए जा रहे हो प्रचार का विरोध करें

 अक्सर यह देखने में आता है कि परशुराम जयंती पर कई स्थानों पर परशुराम का महिमामंडन करने के लिए राज राजेश्वर भगवान सहस्त्रार्जुन का मान मर्दन किया जाता रहा है। पिछले वर्ष भी महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के प्रजावाणी नामक दैनिक समाचार पत्र में एक ब्राह्मण लेखक द्वारा राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन भगवान के बारे में अपमानजनक बातें लिखी थी, जिसका विरोध श्री अविनाश कमलापुरे जी ने किया था एवं साक्ष्य के तौर पर आचार्य श्री विनोद शास्त्री जी द्वारा लिखा गया लेख  बताया था। फलस्वरूप लेखक ने अगले दिन अपने लेख के लिए समग्र हैहयवंशीय समाज क्षमा मांगी थी।

 यह षड्यंत्र बहुत लंबे समय से चला आ रहा है। चूंकि शिक्षा  एवं धार्मिक पुस्तकें लिखने का कार्य ब्राह्मणों के हाथों में ही रहा है, जिस का दुरुपयोग करते हुए जानबूझकर कुछ क्षत्रिय विरोधी मानसिकता वाले ब्राह्मणों द्वारा धर्मग्रंथों में  जानबूझकर छेड़छाड़ की गई है। भगवान सहस्त्रार्जुन एवं हैहयवंश की छवि को जनसामान्य के सामने तोड़ मरोड़ कर पेश करने की चेष्टा की जाती रही है।

  इस प्रकार के षड्यंत्र को कल परशुराम जयंती पर वापस दोहराए जाने की प्रबल आशंका है। आप सभी स्वजातीय बंधुओं से आग्रह है कि अपने अपने स्तर पर इसका विरोध अवश्य करें।

 जो झूठी बात सबसे ज्यादा फैलाई जाती है वह है राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन भगवान को एक अत्याचारी राजा बताना जबकि भविष्य पुराण (अध्याय 106 अनन्त वृत महात्म्य कार्तवीर्य आविर्भाव वृतांत), स्मृति पुराण (महिष्मति महात्म्य अध्याय 15,3), महाभारत (अध्याय 49- 35,36,37,44) वायु पुराण(94,94-14), मत्स्य पुराण ( अध्याय 43-13,14,17 से 39,50 से 52),  वाल्मीकि रामायण (उत्तरकांड, सर्ग 32-2,15,64,65,73), विष्णु पुराण (अध्याय 11-13 से 17), मंत्र महोदधि (अध्याय 17, गीता प्रेस) सहस्त्रार्जुन भगवान की महिमा बताई गई है।

 पुराणों में बताया गया है कि इन्होंने भगवान दत्तात्रेय को अपने तप से प्रसन्न कर हजार हाथों का बल प्राप्त किया था। इन्होंने युद्ध के द्वारा संपूर्ण भूमंडल पर विजय प्राप्त करके धर्म पूर्वक प्रजा पालन किया। पृथ्वी के संपूर्ण साथ द्वीपों को जीतकर सप्तद्वीपेश्वर और चक्रवर्ती उपाधि प्राप्त की थी। आपने राज्य में 10 सहस्त्र यज्ञ किए थे जिनकी वेदी स्वर्ण युक्त थीं  तथा विद्वान ब्राह्मणों को बड़ी दक्षिणा दान दी जाती थी। इनकी महिमा का गायन गंधर्व और नारद करते थे। जिन्होंने नागों को परास्त किया था। अपने बल से जिन्होंने रावण को कैद कर लिया था तथा रावण के नाना पुलस्त्य ऋषि द्वारा याचना करने पर छोड़ दिया था। मत्स्य पुराण में लिखा गया है,  जो भी मानव प्रातः काल में ह उठ कर उनके शुभ नाम का कीर्तन करता है, उसका धन कभी नाश नहीं होता और जिसका नष्ट हो गया हो तो नष्ट हुआ धन पुनः प्राप्त हो जाता है। ऐसे महा प्रतापी राजा अत्याचारी कैसे हो सकते हैं ?

 इस प्रकार जप,तप और दान करने वाले राजा किसी ब्राह्मण से एक गाय छिनने जैसा कार्य कैसे कर सकते हैं ? जबकि वह तो उसी ब्राह्मण को हजारों गाय दान में दे देते थे।

 कुछ ब्राह्मणों द्वारा एक और सबसे बड़ा झूठ प्रचारित किया जाता है कि परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया। यह तो सामान्य सी बात है कोई एक बच्चा भी बता सकता है कि यदि पृथ्वी से एक बार कोई चीज खत्म हो गई तो दूसरी बार कैसे आ सकती है ? फिर 21 बार पूरे क्षत्रिय वर्ण को खत्म कर देना असंभव बात है। रामायण में राम जी द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर लक्ष्मण-परशुराम संवाद बताया गया है जिसमें लक्ष्मण द्वारा परशुराम के घमंड को चकनाचूर कर दिया गया। क्या भगवान राम क्षत्रिय नहीं थे ? इस प्रकार से स्वयं यह बात झूठी लगती है।  यदि परशुराम द्वारा  धरती को एक बार भी क्षत्रिय विहीन कर दिया जाता, तो भारतवर्ष में कितने क्षत्रिय हैं, वो कहाँ आये ? यहां तक की  हैहयवंशीयों  (सभी जातियों की) की संख्या भी करोड़ों में है।

 इस प्रकार स्पष्ट है कि यह केवल ब्राह्मणों को क्षत्रियों से ऊपर बताने का  प्रयास मात्र है।

कृष्णकांत वर्मा
(संपादक)
कसेरा समाचार मासिक पत्रिका, इंदौर